नारनौल, 13 सितम्बर (हरियाणा न्यूज़)
टिकट वितरण के बाद नारनौल कांग्रेस में भले ही भाजपा की तरह बगावत नहीं हुई और न ही टिकट से वंचित लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फॉर्म भरे, लेकिन कार्यकर्ताओं में टिकट वितरण को लेकर भारी गुस्सा और निराशा है| वर्ष 2014 के चुनाव में जमानत ज़ब्त होने और 2019 के चुनाव में भी बुरी तरह पराजित होने के बाद नारनौल हल्का छोड़कर अटेली का रुख करने वाले नरेन्द्र सिंह को तीसरी बार नारनौल से टिकट दिए जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह नहीं है| क्योंकि पिछले पाँच साल में उन्होंने नारनौल के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से कोई संवाद किया ही नहीं| अब हालात यह है कि कल दिनभर कांग्रेस प्रत्याशी नारनौल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को फ़ोन करता रहा, लेकिन अधिकांश नेताओं और कार्यकर्ताओं ने फोन नहीं उठाये|
नारनौल से 2009 में हजकां की टिकट पर जीतने के बाद पार्टी तोड़कर कांग्रेस में जाने से आहत हलके की जनता ने नरेन्द्र सिंह को पिछले दो चुनावों में पूरी तरह नकार दिया| चौ भजनलाल नरेन्द्र सिंह को अपना तीसरा बेटा कहते थे और उसी तरह महत्त्व भी देते थे, किन्तु सत्ता के लालच में चौ भजनलाल से धोखा करके कांग्रेस में शामिल हुए नरेन्द्र सिंह मंत्री तो बन गए, लेकिन लोगों का विश्वास खो बैठे| जनता के मन में एक बात गहरे बैठ गई कि जो अपने धर्म पिता का नहीं हुआ वो जनता का क्या होगा? मंत्री बनकर भी हलके में कोई काम तो करवाया नहीं, उलटे लोगों को नाजायज परेशान किया| इसी का परिणाम था कि 2014 के चुनाव में जमानत तक नहीं बची और 2019 के चुनाव में भी करारी शिकस्त हुई| इस बार क्या होने वाला है कुछ दिन में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी|
उधर सैनी समाज ने एकजुट होकर भारती सैनी के रूप में अपना प्रत्याशी उतार दिया है| सैनी समाज नगर परिषद् चेयरपर्सन के चुनाव में निर्दलीय कमलेश सैनी को हरियाणा में सबसे अधिक मतों से विजयी बनाकर अपनी ताक़त दिखा चुका है| इसलिए उनके प्रत्याशी को हल्के में नहीं लिया जा सकता| भारती सैनी खुद भी नगर परिषद् की चेयरपर्सन रह चुकी हैं और भाजपा टिकट की दावेदार थीं| इसलिए फ़िलहाल मुकाबला भाजपा के ही अधिकृत और बागी नेताओं में होता नज़र आ रहा है| पहले ही दो बार नकारे जा चुके और हलके से गायब रहे व्यक्ति को प्रत्याशी बनाये जाने से कांग्रेस को यहाँ मुख्य मुकाबले में आने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी|
अपना तीसरा चुनाव लड़ रहे भाजपा के ओमप्रकाश यादव के खिलाफ़ खूब एंटी इनकम्बेंसी होने के बाद भी उनके युवा पुत्र की मौत के कारण थोड़ी सहानुभूति लोगों में नज़र आ रही है| लोग कह रहे हैं ओमप्रकाश यादव ने काम भले ही नहीं करवाए हों, लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में किसी को नाजायज परेशान भी नहीं किया|
उधर जेजेपी ने भी सुरेश सैनी को अपना उम्मीदवार बनाकर सैनी वोटों में सेंध लगाने का प्रयास किया है, लेकिन जनाधार खो चुकी जेजेपी इसमें सफल होगी इसकी सम्भावना कम ही नज़र आ रही है|
आप ने रविन्द्र सिंह मटरू को टिकट दिया है, जो जाट बिरादरी से सम्बन्ध रखते| संभवत यह पहला अवसर है जब किसी जाट नेता को किसी मान्यता प्राप्त पार्टी ने नारनौल से टिकट दी है|
इनेलो ने भी नरसिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है, लेकिन फ़िलहाल उनकी लड़ाई पार्टी की उपस्थिति दर्ज़ करवाने तक ही सिमित नज़र आ रही है|
नगर परिषद् में भ्रष्टाचार और शहर की दुर्दशा के खिलाफ़ लगातार संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी उमाकांत छ्क्कड़ इस बार भी निर्दलीय मैदान में हैं| वे शहीद भगत सिंह की तरह चुनाव का उपयोग लोगों को जागरूक करने के लिए करते हैं| साधन और संसाधनों का अभाव होने के बावजूद वे पूरे उत्साह से चुनाव लड़ते हैं और घर-घर जाकर व्यवस्था परिवर्तन में साथ देने की अपील करते हैं|
इनके अलावा शुभराम, कृष्णकुमार और शिवकुमार ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है|
टिकट वितरण के बाद नारनौल कांग्रेस में भले ही भाजपा की तरह बगावत नहीं हुई और न ही टिकट से वंचित लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फॉर्म भरे, लेकिन कार्यकर्ताओं में टिकट वितरण को लेकर भारी गुस्सा और निराशा है| वर्ष 2014 के चुनाव में जमानत ज़ब्त होने और 2019 के चुनाव में भी बुरी तरह पराजित होने के बाद नारनौल हल्का छोड़कर अटेली का रुख करने वाले नरेन्द्र सिंह को तीसरी बार नारनौल से टिकट दिए जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह नहीं है| क्योंकि पिछले पाँच साल में उन्होंने नारनौल के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से कोई संवाद किया ही नहीं| अब हालात यह है कि कल दिनभर कांग्रेस प्रत्याशी नारनौल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को फ़ोन करता रहा, लेकिन अधिकांश नेताओं और कार्यकर्ताओं ने फोन नहीं उठाये|
नारनौल से 2009 में हजकां की टिकट पर जीतने के बाद पार्टी तोड़कर कांग्रेस में जाने से आहत हलके की जनता ने नरेन्द्र सिंह को पिछले दो चुनावों में पूरी तरह नकार दिया| चौ भजनलाल नरेन्द्र सिंह को अपना तीसरा बेटा कहते थे और उसी तरह महत्त्व भी देते थे, किन्तु सत्ता के लालच में चौ भजनलाल से धोखा करके कांग्रेस में शामिल हुए नरेन्द्र सिंह मंत्री तो बन गए, लेकिन लोगों का विश्वास खो बैठे| जनता के मन में एक बात गहरे बैठ गई कि जो अपने धर्म पिता का नहीं हुआ वो जनता का क्या होगा? मंत्री बनकर भी हलके में कोई काम तो करवाया नहीं, उलटे लोगों को नाजायज परेशान किया| इसी का परिणाम था कि 2014 के चुनाव में जमानत तक नहीं बची और 2019 के चुनाव में भी करारी शिकस्त हुई| इस बार क्या होने वाला है कुछ दिन में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी|
उधर सैनी समाज ने एकजुट होकर भारती सैनी के रूप में अपना प्रत्याशी उतार दिया है| सैनी समाज नगर परिषद् चेयरपर्सन के चुनाव में निर्दलीय कमलेश सैनी को हरियाणा में सबसे अधिक मतों से विजयी बनाकर अपनी ताक़त दिखा चुका है| इसलिए उनके प्रत्याशी को हल्के में नहीं लिया जा सकता| भारती सैनी खुद भी नगर परिषद् की चेयरपर्सन रह चुकी हैं और भाजपा टिकट की दावेदार थीं| इसलिए फ़िलहाल मुकाबला भाजपा के ही अधिकृत और बागी नेताओं में होता नज़र आ रहा है| पहले ही दो बार नकारे जा चुके और हलके से गायब रहे व्यक्ति को प्रत्याशी बनाये जाने से कांग्रेस को यहाँ मुख्य मुकाबले में आने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी|
अपना तीसरा चुनाव लड़ रहे भाजपा के ओमप्रकाश यादव के खिलाफ़ खूब एंटी इनकम्बेंसी होने के बाद भी उनके युवा पुत्र की मौत के कारण थोड़ी सहानुभूति लोगों में नज़र आ रही है| लोग कह रहे हैं ओमप्रकाश यादव ने काम भले ही नहीं करवाए हों, लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में किसी को नाजायज परेशान भी नहीं किया|
उधर जेजेपी ने भी सुरेश सैनी को अपना उम्मीदवार बनाकर सैनी वोटों में सेंध लगाने का प्रयास किया है, लेकिन जनाधार खो चुकी जेजेपी इसमें सफल होगी इसकी सम्भावना कम ही नज़र आ रही है|
आप ने रविन्द्र सिंह मटरू को टिकट दिया है, जो जाट बिरादरी से सम्बन्ध रखते| संभवत यह पहला अवसर है जब किसी जाट नेता को किसी मान्यता प्राप्त पार्टी ने नारनौल से टिकट दी है|
इनेलो ने भी नरसिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है, लेकिन फ़िलहाल उनकी लड़ाई पार्टी की उपस्थिति दर्ज़ करवाने तक ही सिमित नज़र आ रही है|
नगर परिषद् में भ्रष्टाचार और शहर की दुर्दशा के खिलाफ़ लगातार संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी उमाकांत छ्क्कड़ इस बार भी निर्दलीय मैदान में हैं| वे शहीद भगत सिंह की तरह चुनाव का उपयोग लोगों को जागरूक करने के लिए करते हैं| साधन और संसाधनों का अभाव होने के बावजूद वे पूरे उत्साह से चुनाव लड़ते हैं और घर-घर जाकर व्यवस्था परिवर्तन में साथ देने की अपील करते हैं|
इनके अलावा शुभराम, कृष्णकुमार और शिवकुमार ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है|