नारनौल, 28 जून (हरियाणा न्यूज़ ब्यूरो)
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर एवं शोध निदेशक प्रोफेसर प्रदीप नायर ने कहा है कि नए शोधार्थियों को समय के साथ खुद को बदलते हुए नई प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना चाहिए। नई प्रौद्योगिकी की मदद से शिक्षक एवं विद्यार्थी अच्छा शोध कर अपना व अपने विश्वविद्यालय का नाम दुनिया भर में रोशन कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अकादमिक क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए शिक्षक एवं शोधार्थी दोनों को शोध के लिए गंभीर होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जो लोग नई तकनीक का प्रयोग करेंगे वे ही अंतराष्ट्रीय स्तर का प्रकाशन कर पाएंगे वे हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में व्यवस्थित साहित्य समीक्षा पर एक दिवसीय कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। कार्यशाला में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रदीप नायर, केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब के सहायक प्रोफेसर डॉ. रुबल कनोजिया, प्रोफसर हरीश कुमार, डॉ. श्रीराम पांडे ने अपने उदबोधन दिए। हाइब्रिड मोड में आयोजित इस कार्यशाला में देश के 20 से अधिक विश्वविद्यालयों से 50 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया|
प्रोफेसर प्रदीप नायर ने कहा कि एसएलआर साहित्य अवलोकन की वैज्ञानिक पद्वित है । अच्छे शोध के लिए शोधार्थियों को इसका प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोधार्थी को एक शोध पत्र को कैसे पढ़ें इसका विशेष रूप से ज्ञान होना चाहिए। जो शोधार्थी अपने क्षेत्र में जितना साहित्य पढ़ेंगे वैसा ही शोध वे कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि अच्छे शोध को बढ़ावा देने के लिए शोधार्थियों एवं विश्वविद्यालयों के लिए बीच में आपसी सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने साक्ष्य आधारित अनुसंधान पर जोर दिया, जो व्यवस्थित साहित्य समीक्षा की नींव है। एसएलआर त्रुटियों को खोजने में मदद करता है क्योंकि यह साक्ष्य के बारे में अधिक चिंतित है, यह पद्वित अच्छे शोध की पहचान, चयन और मूल्यांकन करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक व्यापक विधि है।
अपने उदबोधन में उन्होंने फिजिकल रिव्यू, मेटा एनालिसिस, नरेटिव समीक्षा, अलोचनात्मक समीक्षा, इंटरवेनशन समीक्षा, ओब्र्जवेशनल समीक्षा, डाइग्नोस्टि साहित्य समीक्षा के बारे में विस्तार से बताते हुए इसकी कमियों व एसएलआर करते समय एक शोधार्थी को किस तरह के डेटाबेस का प्रयोग करना चाहिए इसके बारे में विस्तार से बताया| उन्होंने एसलआर के टूल्स, कीवर्ड, साइटेशन इंडेक्स सहित इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्राध्यापक डॉ. रुबल कनोजिया शोध ने पत्र को पढ़ने और उसका मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त समय देने पर जोर दिया। किसी पेपर की पूरी समझ और परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए उसे कम से कम एक सप्ताह तक जरूर पढ़ना चाहिए। डॉ. रूबल ने कहा कि शोधार्थियों को चाहिए कि वे अपने विषय से जुड़े विद्वानों की एक सूची बनाएं और उनके शोधपत्रों का निरंतर अध्ययन करें।
रिसर्च में नवीनता के बारे में बोलते हुए उन्होंने इस तथ्य को स्पष्ट किया कि नवीनता आउटपुट में निहित है, अनुसंधान में नहीं। अन्यथा यह पुनः खोज न होती, खोज ही होती।
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के रसायन विभाग के प्रो. हरीश ने अनुसंधान प्रविधि पर चर्चा करते हुए अच्छे जर्नल का चुनाव, साहित्य समीक्षा, यूजीसी केयर सूचीबद्ध जर्नल और क्लोन जर्नल के बारे विस्तार से बताया।
पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग के शिक्षक डॉ. श्रीराम पांडे ने कहा कि एसएलआर के महत्व के बारे में बात करते हुए कहा, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई उच्च गुणवत्ता वाले शोध साक्ष्यों की समीक्षा कर सकता है। एसएलआर अनुसंधान क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह रिसर्च गैप को आसानी से पहचानने में मदद करता है। यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, कोई भी एसएलआर के माध्यम से आसानी से बहुत ही आसानी से दुनिया भर में किसी क्षेत्र विशेष में हुए अध्ययनों का निष्कर्ष निकाल सकता है।एसएलआर के माध्यम से एक शोधकर्ता गुणवत्तापूर्ण शोध कर सकता है जिससे उसके प्रकाशन की संभावना भी बढ़ जाती है। इस मौके पर उन्होंने एसएलआर के प्रयोग के विभिन्न टूल्स एवं सॉफ्टवेयर के बारे में भी शोधार्थियों को बताते हुए उसका प्रशिक्षण भी दिया।
विभागध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार ने सभी वक्ताओं का आभार जताते हुए कहा कि इस कार्यशाला से शोधार्थियों में निश्चित रूप से शोध को लेकर गंभीरता बढ़ेगी एवं वे जान सकेंगे की गुणवत्ता आधारित शोध के लिए आज टेक्नोलॉजी का प्रयोग कितना जरूरी है। विभिन्न सत्रों का संचालन विभाग के शोधार्थी गौरव जोशी, गुंजन, भावना भटट, चिनमोयी दास, कमलदीप व अजय मलिक ने किया।