नारनौल, 27 जून (हरियाणा न्यूज़ ब्यूरो)
जिला के किसानों को अभी तक ख़राब हुई फसलों का मुआवजा नहीं मिला है, जबकि बीमे की राशी समय पर काट ली जाती है| किसान भारी दुविधा में हैं कि खराब फसलों के मुआवजे के लिए आखिर किससे फरियाद करें। 2022 में खराब हुई खरीफ की फसल का लगभग 10 हजार किसानों का 3 करोड़ रुपये का मुआवजा आज तक किसानों के खाते में नहीं आया है, जबकि किसानों ने क्षतिपूर्ति पोर्टल पर भी अपनी रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी। मुआवजे के लिए किसान दर्जनों बार कृषि विभाग के कार्यालय में चक्कर काट चुके हैं, जबकि फसल का बीमा करने वाली रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी का तीन साल का टेंडर 31 मार्च 2023 को समाप्त भी हो चुका है। यहां तक कि इंश्योरेंस कंपनी के किसी भी कर्मचारी या अधिकारी के बारे में किसानों को कोई जानकारी ही नहीं है। अधिकांश किसान तो बीमा करने वाली कम्पनी का नाम भी नहीं जानते हैं। इसको लेकर किसान भिवानी-महेंद्रगढ़ सांसद चौधरी धर्मवीर सिंह को ज्ञापन देकर उनकी फसलों का मुआवजा शीघ्र दिलवाने की मांग कर चुके है। लेकिन वहां भी किसानों को सिर्फ आश्वासन ही मिला है।
उल्लेखनीय है कि जिला में किसानों के साथ कृषि बीमा के नाम पर मजाक किया जा रहा है। जिन किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से बीमा करवा रखा था उन किसानों को आज तक मुआवजा नहीं मिला, किसान दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं। अनेकों किसान तो ऐसे है जिनकी खून पसीने से सिंचित की गई फसल लगातार प्रकृति की मार से नष्ट हो रही है लेकिन उन्हें फसल बीमा योजना के तहत आज तक एक पैसा भी नहीं मिला है। इतना जरूर है कि इनके खातों से बीमा के प्रीमियम की राशि हर वर्ष अपने आप कटती रहती है।
कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार फिलहाल 2022 में खरीफ फसल के नष्ट होने के लगभग 10 हजार किसानों का 3 करोड़ रुपयेे का मुआवजा बीमा कम्पनी की तरफ बाकी है। जबकि बीमा कम्पनी का तीन साल का टेंडर 31 मार्च 2023 को समाप्त भी हो चुका है। 3 जुलाई को नई बीमा कम्पनी के टेंडर होने हैं।
किस फसल का कितना है प्रीमियम:
कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार कपास की फसल के एक एकड़ की बीमा राशि 34248 रुपये के लिए प्रीमियम राशि 1712 रुपये है। इसी तरह बाजरा की फसल की बीमा राशि 16604 रुपये के लिए प्रीमियम राशि 332 रुपये है, जबकि गेहूं की बीमा राशि 26984 रुपये के लिए 404 रुपये व सरसों की एकड़ फसल की बीमा राशि 18162 रुपये के लिए प्रीमियम राशि 272 रुपये है जो किसान के खाते से अपने आप कट जाती है।
क्या कहते हैं किसान:
गांव मिर्जापुर बाछोद के किसान धर्मेंद्र यादव ने बताया कि उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड बनवा रखा है। फसल बीमा का प्रीमियम उनके खाते से नियमित रूप से कटता है, लेकिन मुआवजा आज तक खाते में नहीं आया है। उन्होंने क्षतिपूर्ति पोर्टल पर भी फसल खराबे की सूचना दर्ज करवा दी। पटवारी ने एपीआर पर उनके हस्ताक्षर भी करवा लिए लेकिन मुआवजा राशि नहीं आई है। इस संबंध में उन्होंने अन्य किसानों के साथ दो दिन पहले स्थानीय सांसद धर्मवीर सिंह को ज्ञापन भी दिया था। सांसद द्वारा पूछने पर कृषि विभाग के अधिकारियों ने सारा मामला बीमा कम्पनी के सर डालकर हाथ खींच लिए।
गांव शहरपुर के किसान हनुमान ने बताया कि कई दिन कृषि विभाग के चक्कर काटने के बाद उन्हें किसी ने टोल फ्री नम्बर पर कॉल करने को कहा। कॉल की तो वहां से उन्हें 10 दिन बाद का समय दिया गया है।
इसी गांव के किसान कबूल सिंह ने बताया कि उनकी फसल का बीमा तो हो गया था लेकिन ओलावृष्टि के बाद उन्होंने कम्पनी को कॉल नही किया, क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी। अब कम्पनी ने उनका केस रिजेक्ट कर दिया है।
गांव लुजोता के किसान इंद्राज ने बताया कि उन्होंने पीएनबी बैक से केसीसी करवाई थी, जिसे छह वर्ष हो चुके हैं। उसके बाद उनकी तीन सरसों की फसलें खराबे का शिकार हो चुकी हैं, लेकिन आज तक बीमा कंपनी वालों ने खेतों का मुआयना तक नहीं किया है तो फिर खराबे की भरपाई की उम्मीद बीमा कंपनी से करना ही बेमानी है।
नांगल दर्गू के किसान लीलाराम और राजेश दोनों भाइयोंं ने कहा कि वह तो सिर्फ बीमा प्रीमियम के नाम सरकार को टैक्स देते है, जैसे पुराने जमाने में राजा महाराजा किसानों से कर लिया करते। इन दोनों किसानों की भी सरसों की फसल पिछले तीन सालों से पाले और मौसम का शिकार बनती रही है, लेकिन यहां भी बीमा कंपनी के किसी नुमाइंदे ने मौका मुआयना तक नहीं किया है, मुआवजा तो दूर की बात है।
मुसनौता के किसान रामजीलाल व नरेश ने बताया कि उनके गांव की सीमा में भू जलस्तर इतना नीचे जा चुका कि कुओं के जल से फसल की सिंचाई की बाबत सोचा भी नहीं जा सकता। नहर का निर्माण यहां अभी तक संभव नहीं हो पाया है। बरसाती पानी पर आधारित सरसों की फसल से यहां की किसानी जिंदा है। पिछले चार सालों से कभी पाला तो कभी बेतहाशा सर्दी के चलते उनकी सरसों की फसल अक्सर खराबे का शिकार बनती रही है, लेकिन बीमा कंपनी द्वारा आज तक एक पैसा भी किसानों को राहत के नाम पर नहीं दिया गया है।
गांव सैद अलीपुर के किसान किशनचंद खेती के जरिए ही परिवार का भरण पोषण करते हैं। उनका कहना है कि उनके यहां जब फसल को पानी की आवश्यकता होती है तो नहर सूखी नजर आती है और जब बरसात कुछ ठीक ठाक रहती है और फसल से उम्मीद जगती है तो पाले और सर्दी का प्रकोप खड़ी फसल को बर्बाद कर देता है। बैंक से उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड लिया है इसमें से बीमा के प्रीमियम राशि का भुगतान पहले ही बैंक अधिकारी काट लेते है, जबकि उन्हें यह भी नहीं बताया जाता कि उनकी फसलों का बीमा किस कंपनी द्वारा किया जा रहा है। बीमा किस बला का नाम है, वह सिर्फ बीमा प्रीमियम राशि का भुगतान करते वक्त ही पता चलता है, लेकिन जब फसल खराब हो जाती है तो सिर्फ तकदीर की कोसते हुए ही सब्र करना पड़ता है।
क्या कहते हैं कृषि अधिकारी:
कृषि विकास अधिकारी पंकज यादव ने बताया कि बीमा कम्पनी को शीघ्र भुगतान के लिए कहा गया है। अगले एक माह तक किसानों के खाते में भुगतान होने की संभावना है।