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    खट्टर सरकार की महत्वाकांक्षी नीतियाँ भाजपा के गले की फांस तो नहीं बन जाएँगी?

    रघुविन्द्र यादव
    नारनौल, 25 जून|
    खट्टर सरकार की जो महत्वाकांक्षी नीतियाँ और योजनायें आज लोगों के गले की फांस बनी हुई हैं, वे आने वाले चुनावों में कहीं भाजपा के गले की फांस तो नहीं बन जाएँगी? यह सवाल आज प्रदेश में बहुत तेजी से उभर रहा है| क्योंकि सरकार की इन महत्वाकांक्षी योजनाओं से आम आदमी को सुविधा कम और परेशानियां ज्यादा हो रही हैं| लोग कार्यालयों के चक्कर लगा-लगाकर परेशान हो चुके हैं और विपक्ष इन योजनाओं को सरकार आने पर फाड़कर फेंकने का भरोसा दिला रहा है| 

    परिवार पहचान पत्र (पी पी पी)

    खट्टर सरकार ने फॅमिली आईडी अथवा परिवार पहचान पत्र (पी पी पी), प्रॉपर्टी आईडी और सीईटी लागू करके दावा किया था कि इनसे लोगों को लाभ होगा| पी पी पी से ऑटो मोड में वृद्धवस्था पेंशन, राशन कार्ड, जाति प्रमाण पत्र आदि बनाने का दावा किया गया था| किन्तु सरकार की यह योजना आज बहुसंख्यक लोगों के लिए सिरदर्द बनी हुई है| किसी की इनकम वेरीफाई नहीं हो रही तो किसी की जन्मतिथि| परिणाम स्वरुप लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है| गलत इनकम दर्ज हो जाने से जहाँ पात्र लोगों की पेंशन बंद हो गई, वहीं बहुत से गरीबों का राशन और अन्य सुविधाएँ भी बंद हो गई| लोग कार्यालयों के चक्कर लगाकर थक लिए किन्तु कहीं कोई समाधान नहीं हो रहा| ताजा समस्या उन विद्यार्थियों के साथ आ रही है, जिन्होंने कॉलेजों में दाखिला लेना है| सरकार ने जिस तरह पहले हर जगह आधार कार्ड को अनिवार्य किया था, उसी तरह अब परिवार पहचान पत्र को अनिवार्य कर दिया, किन्तु उसमें किसी की आमदनी सही नहीं है तो किसी की जन्मतिथि, कुछ की तो पी पी पी ही वेरीफाई नहीं हुई है| अकेले जिला महेंद्रगढ़ में लगभग 10 प्रतिशत आवेदक ऐसे हैं जो पी पी पी नोट वेरीफाई की समस्या के चलते आवेदन नहीं कर पा रहे| 
    सरकार ने अकेले व्यक्ति का परिवार पहचान पत्र न बनाने का भी निर्णय किया हुआ है, जो बहुत से लोगों पर भारी पड़ रहा है| जिन लोगों की शादी नहीं हुई या जिनकी पत्नी की मौत हो गई है और बच्चे नहीं हैं, ऐसे लोगों के परिवार पहचान पत्र न बनने से वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित हो गए हैं| न तो सरकार उनका परिवार पहचान पत्र बना रही है और न ही उन्हें योजनाओं का लाभ दे रही है| ऐसा ही एक मामला जिला रेवाड़ी में सामने आया है जहाँ नया गाँव निवासी 71 वर्षीय बुजुर्ग सत्यवीर मोड बांधकर जिला उपायुक्त कार्यालय पहुँच गया और मांग की कि या तो सरकार उसका पहचान पत्र बनवाए या उसकी शादी करवाए ताकि वे दो हो जाएँ और परिवार पहचान पत्र बन सके| 
    यह पहला मामला नहीं है, पेंशन कटने से नाराज काफी बुजुर्ग पहले भी मोड बांधकर बरात निकाल चुके हैं| ऐसा लगता है कि योजना बनाते समय अधिकारी उसकी खामियों की तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देते और प्रदेश सरकार तुरंत हर योजना को डंडे के जोर पर लागू कर देती है|
    पी पी पी को लेकर सरकार की जानकारी और दावा भले ही कुछ भी हो, लेकिन सच यहाँ है कि लोग इससे बेहद परेशान हैं और इसका खामयाजा भाजपा को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है| विपक्ष को इस बात की जानकारी है कि लोग परेशान हैं| इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किरण चौधरी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस सरकार बनने पर इसे पूरी तरह समाप्त करने की घोषणा कर चुके हैं| 

    प्रॉपर्टी आईडी

    सरकार की दूसरी महत्वाकांक्षी योजना प्रॉपर्टी आईडी बनाने की है, जो पहले ही दिन से गलत एवं आधे अधूरे सर्वे और भ्रष्टाचार की शिकायतों के चलते विवादों में है| सरकार ने अवैध कॉलोनियों पर अंकुश लगाने और बेनामी सम्पत्ति पर लगाम कसने के नाम पर इसे शुरू किया था| याशी नाम की किसी कंपनी कि सर्वे का काम दिया था, जिस पर आरोप है कि हर शहर में हजारों लोगों के या तो डाटा की नहीं भरे या गलत भर दिए, जिसे ठीक करवाने के नाम पर भारी भ्रष्टाचार की शिकायते प्रदेश भर से आई तो दोबारा सर्वे करवाया गया, किन्तु अब भी स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं है और लोग परेशान हैं| किसी का रकबा गलत दर्ज है तो किसी की सम्पत्ति को साझा दिखा दिया गया है| ठीक करवाने के लिए दस्तावेज़ और सभी हिस्सेदारों की उपस्थिति मांगी जा रही है| लालडोरा की जमीन के लिए भी नगर परिषद् वही शर्तें रख रही हैं, जो बाक़ी पर लागू होती हैं| सरकार की ओर से इन्हें ठीक करने के लिए शिविर लगवाए जा रहे हैं, किन्तु पीड़ितों का आरोप है कि शिविर में भी केवल खानापूर्ति होती है और बिना सेटिंग किसी का काम नहीं होता| 

    सरकार ने प्रॉपर्टी आईडी के नाम पर रजिस्ट्रियों पर पाबंदी तो लगा दी, किन्तु इसके बाद न तो नयी कॉलोनियों को रेगुलर किया गया और न कोई नए सेक्टर बनाये गए| पुरानी कॉलोनी और सेक्टर या तो भर चुके हैं या उनमें रेट इतने ऊँचे हैं कि आम आदमी की पहुँच से बाहर हैं| ऊपर से हुडा ने भी खाली प्लॉट्स को ड्रा में देने की बजाय मार्किट रेट पर बोली लगानी शुरू कर दी| जिससे लोगों के सामने सिर छुपाने को आशियाना बनाने का संकट खडा हो गया है और लोग दिन-रात सरकार को कोस रहे हैं| विपक्ष के पास इस मुद्दे की भी फीडबेक है और कांग्रेस के नेता सरकार आने पर इसे फाड़कर फेंकने का भरोसा लोगों को दिला रहे हैं| यदि सरकार ने समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया तो यह भी भाजपा के गले की फांस बन सकती है| 

    सीईटी

    सरकार ने बेरोजगार युवाओं को बार-बार आवेदन करने के खर्च और फीस से बचाने के नाम पर सीईटी अर्थात कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट की शुरुआत की है| इसकी घोषणा के समय कहा गया था कि यह हर सार करवाया जायेगा| किन्तु वास्तविकता यह है कि न तो पहली भर्ती आज तक पूरी हुई है और न यह हर साल आयोजित हो रहा है| अब तक एक बार हुई परीक्षा में पास हुए युवाओं को की भी आयोग ने गेंद बनाई हुई है और मनचाहे तरीके से उन्हें इधर-उधर दौड़ाया जा रहा है| आये दिन नियम बदले जा रहे हैं| दूसरे दौर की परीक्षा को बार बार स्थगित किया जा रहे है| सीईटी पास कर चुके सभी युवाओं को अगले चरण की परीक्षा में शामिल नहीं किया जा रहा है, केवल चार गुना उम्मीदवार बुलाये जा रहे हैं| कुछ पदों के लिए आयोग को चार गुना उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि आयोग ने परीक्षा का जो पैटर्न रखा वह सही नहीं था| तकनीकी पद वालों से भी वही सामान्य ज्ञान के सवाल पूछे गए जो किसी अतकनीकी पद वाले से पूछे जाने थे| कुल मिलाकर सीईटी का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो सका है| सरकार भर्ती को या तो जानबूझकर चुनावी साल तक खींचना चाहती है या फिर आयोग और उसके सलाहकार खुद ही समझ नहीं पा रहे कि करना क्या है? इसके परिणामस्वरूप युवाओं में सरकार के प्रति नाराज़गी बढ़ रही है, एक तरफ जहाँ कुछ लोग कोर्ट जा रहे हैं, वहीं बड़ी संख्या में लोगों ने गत दिनों मुख्यमंत्री के निवास पर युवा कांग्रेस के बैनर तले प्रदर्शन भी किया है| 
    विपक्ष सरकार आने पर सीईटी को भी समाप्त करने और सभी युवाओं को मौका देने की बात कह रहा है| करनाल में मुख्यमंत्री निवास पर हुए प्रदर्शन का नेतृत्व भी कांग्रेस सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने किया था| 

    इन योजनाओं का लागू करने के पीछे सरकार की मंशा भले ही अच्छी रही हो, मगर क्रियान्वयन के स्तर पर लापरवाही, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के चलते ये योजनायें फ़िलहाल लोगों के लिए किसी आफत से कम नहीं हैं| प्रॉपर्टी आईडी को तो नगर पालिका और नगर परिषदों ने कमाई का जरिया बना लिया है| त्रुटी ठीक करवाने के लिए पांच हजार रूपये फीस तय की जा चुकी है| इनसे लाभान्वित होने वालों की संख्या कम और पीड़ितों की संख्या बहुत अधिक है| जिससे लोगों में रोष है और उसका खामयाजा पार्टी को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है| 

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